मकर संक्रन्ति पर्व मनाएं,
तिल गुड़ के लाडू खाएं।
चलो चले छत के ऊपर,
रंग बिरंगी पतंग उड़ाएं।
अति पावन यह दिन कहावे,
दान पुण्य का महत्तम गावे।
चलो चले किसी रोते को,
देकर कुछ उपहार हंसावे ।।
गो माता की कुछ सेवा हो,
कल-कल बहती माँ रेवा हो।
चलो लगाए आज डुबकियां,
हर मात पिता की सेवा हो।।
हाथ जोड़ बस इतना मांगे,
रहे न कोई जग में अभागे।
जो बिछुड़े है उन्हें मिला दे,
सोये जन के भाग जगा दे।।
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