जिंदगी एक तमाशा
पल में आशा पल में निराशा।
क्या है जिंदगी, एक तमाशा?
(1)
कभी रुलाती कभी हँसाती
कभी रूठती कभी मनाती
कभी खिजाती कभी रिझाती
कभी सुखाती कभी भींजाती
क्या है जिंदगी, एक दिलासा
पल में आशा पल में निराशा।
क्या है जिंदगी, एक तमाशा?
(2)
बलीवेदी पर अधिकारों का
तेरे मेरे का खेल अजब
कहीं फूल कहीं काँटे हैं
भाई-भाई को बाँटे हैं
कैसी स्वारथ की अभिलाषा
पल में आशा पल में निराशा।
क्या है जिंदगी, एक तमाशा?
(3)
दुःख के बादल मंडराए हैं
गम की देखो झड़ी लगी
पग-पग पर खड़े हैं ठग लुटेरे
हर चौराहे पर ठगी लगी है।
सच का मंजर झूठ का झाँसा
पल में आशा पल में निराशा।
क्या है जिंदगी, एक तमाशा?
3 टिप्पणियाँ
सच कहा एक तमाशा ही तो है जिंदगीबहुत सुंदर सार्थक कविता ।
सच कहा एक तमाशा ही तो है जिंदगीबहुत सुंदर सार्थक कविता ।