मन का रहस्य
जमीन और आसमान के
गणित और रेखागणित
होश मे आने के लिए आजतक
ऋण गुणन फल विभाजन
कागज पर उलझाते है
आत्मा इन अपनी आकृतियों के
भुलावे से मन के संग हो ली
यह सचमुच बहुत रहस्यमय है
यह कहां-कहां भटकता रहा
आपको हुकुम है कि सुख से सोइये
मगर सुख कहां है?
थका होने पर भी
निंद्रादेवी को मनाने के लिए
उसे लगभग आधी रात तक जगना पड़ा।
घर के भीतर
खाने का सुख तो बहुत है
परन्तु दरवाजे पर
उसे कभी सोने का सुख नहीं मिला।
उसे लगा
उसे आश्चर्य हो रहा था कि रात को दरवाजे पर
बाहर-भीतर अंधेरे में कोई रहस्य मंडरा रहा है।
विवाह की रात
कोहबर में तो अपार आनंद था
पर भिनसहरा लगते
कुछ सो लेने के लिए
बाहर यहां दरवाजें पर आया
तो चारपाई के नीचे
एक बड़ा-सा बिच्छू
डंक तरनाये
चलता दृष्टिगोचर हुआ।
वह तो मार डाला गया
पर नींद जो उखड़ी-उड़ी
सो फिर नहीं वापस आयी।
भला यह आदमी के सोने की जगह है ?
रात-दिन हाय पैसा,
हाय जमीन
मनको सुकून कहाँ
पर तभी एक बिल्ली
उस दरवाज़े के
खपरैल से कूदकर
गली फांदती हुई
बगल की
दूसरी हवेली के
खपरैल पर कूद गयी
और इस प्रकार कुछ
खपरैल जो गली में गिरे
तो कुल मिलाकर
एक क्षण के लिए
रोमांचक खड़-भड़ हो गयी
वह चारपाई पर उठ बैठा
चारों ओर निगाह दौड़ाई
कोई नहीं है ?
उस मुर्दे की भांति
सोये आदमी को देखकर डर लगता है
फिर कोई और अज्ञात भय था
जो भीतर से सिर उठा रहा था।
कितना उदास
और मनहूस लग रहा है
यह बैठकखाना।
कोई गड़बड़ी न हो
गड़बड़ी क्या हो सकती है।
कोई बैल खोलकर चुरा ले जा सकता है।
डाका पड़ सकता है।
सेंध लग सकती है।
और?
और ?
अरे यह क्या ?
यह तो सचमुच की गड़बड़ी ।
वह मुँडेर पर साक्षात् कुबड़ी चुड़ैल,
हाथों में लम्बाबांस,
सिर के बाल खुले,
परम कुवेश,
जय बजरंग बाबा !
उसने आंखों को मलकर फिर-फिर देखा।
हां, वह होश में है ।
अपनी आंखों से
यह देख रहा है।
मगर, अब नहीं देखेगा।
सो जा चादर ओढ़कर
वह पड़ोसी के घर
गड़बड़ी करने वाली प्रेतिनी
छप्पर-छप्पर घूम रही है।
सावधान इसका
रुख इधर ही है।
हां, चादर के कोने से
जरा एक आंख के लिए
सुराख छोड़ दो।
अरे राम,
यह तो सचमुच
इधर ही इधर आ रही है।
तीन खण्ड की हवेली
लांघ छप्पर पर उगी
भीतर की गड़बड़ी
अब शायद
घर-बाहर हो जायेगी।
हो जाय,
हो जाय, मुझको क्या ?
वह तो सोया हुआ है।
मुर्दा है।
वह क्या जाने !...
लेकिन,
लेकिन उत्तरदायित्व
कैसा उत्तरदायित्व ?
नौकर साले कहाँ हैं ?
वह देखो,
उस ओर उसने बिना छिला हुआ
वह गांठदार बांस का लम्बा टुकड़ा
धीरे से जमीन पर उतार दिया |
गजब का साहस ।
एकदम जवान प्रेतिनी,
दम साध रही है,
खड़बड़ न हो,
आहिस्ते-आहिस्ते
छप्पर पर बैठ गयी
नीचे बांस
एक बार चारों ओर देखा
सांस रोक संतुलन
ठीक कर
कितने सधे हुए हाथ-पैर हैं
कितनी हवेलियों की
खपरैलों को लांघ चुकी हैं ?
गुड्ड पक्की ट्रेनिंग है"
हां, वह उसको
सोया मुर्दा समझ रही है...
ऐसा तगड़ा शिकार हाथ से निकल जाएगा ?
उसकी छाती धड़कने लगी।
अब मिनट नहीं,
कुछ सेकेंड का मामला है ।
बस, अब बांस की आख़िरी
दो गिरह वह जमीन पर आ गयी
धत्तेरे नामर्द की एक तूफान उठा
'कहां भाग कर जायेगी,
रे चोरिन !'
फुर्ती से झपटकर उसने
पीछे से उसके बालों को
मुट्ठी में जकड़ लिया।
फिर पूछा,
'बता, तू कौन है ?"
पत्थर-सी जड़ और मौन हो औरत ने
आंखें बन्द कर लीं।
उसने देखा,
अद्भुत खूबसूरत है
और थर-थर,
थर-थर कांप रही है।
पीठ पर कूबड़ नहीं गठरी है ।
शायद गहने-कपड़े हैं ।
क्षण-भर बाद
अत्यन्त धीरतापूर्वक
शब्दों में अपने कल- कंठ
की सारी मिठास घोलकर
शान्तभाव से वह बोली
आप की ही एक करमजली बेटी..
और उसके पैरों पर माथा पटक दिया।
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