जगजीवन चालीसा
फूल-फूल के फूलने से तु,
प्यारे 'फूल' न बन जाना ।
कांटो की जो जरा चुभन हो,
फटे फूल ,जीवन बचाना।।
जीवन बने वट वृक्ष सा तेरा,
फल-फूलों से लदा हुआ ।
कंटक की दुख भरी जलन का ,
मन से डर जो जुदा हुआ ।।
हर दिन बस मंगल ही मंगल,
जंगल का कोई नाम नहीं ।
सुख-फूल , दुख के कांटे सम,
दंगल का फिर काम नहीं ।।
रंग-रंग के फूल परिवेष्टित,
फूल गुच्छ जगजीवन मनोहर ।
धर्म ,अर्थ और काम, मोक्ष ,
यही जीवन की महा धरोहर ।।
कोमल फूल ,तीक्ष्ण कांटे सब,
जीवन में भांति-भांति हैं रंग ।
जीवन तेरा ना इतना कोमल ,
कि थाप पड़े और फूटे चंग ।।
मन को मोहते शरद और सावन,
आते दिन ये बहार के ।
बसंत में नव कोपल खिलते,
पतझड़ ,शीत में खंखाड़ते ।।
धरती निर्धुम अग्निकुंड जलती,
जेठ की तपती धूप में।
कांटो की तेज जलन भी शामिल ,
मोहक फूलों के रूप में ।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो ,
फूल फूलना दस दिन का ।
कांटो से फिर पड़ता पाला ,
खँखड़-खँखड़ जीवन का ।।
पल-पल ,दिन-दिन साल भी चलते,
मन में फूलों के मेले ।
मस्त मगन जो जीवन जीता,
क्या करले कांटों की बेलें ?।।
स्नेह फूल कांटों से डरना ,
जीवन जी नहीं पाएगा ।
सुख दुख में समता का अनुभव,
जीवन नइया तराएगा ।।
जीत काल ,अवधूत सा बन कर,
जीवन तेरा बने अजेय ।
फूल-फूल पर मुग्ध रहे तो ,
कैसे मिटे कांटो का भय ।।
देख बुढ़ापा नितांत ठूंठ सा ,
बचपन-युव याद आएंगे ।
रिश्ते नाते मित्र सखा जब,
छोड़ अकेला चले जाएंगे ।।
जीवन तुझको तब भी जीना,
मंद हंसी मुस्कान से ।
यही तो जीवन रथ है प्यारे ,
जो पहुंचे जन्म-शमशान पे ।।
एक बार तो चिता अगन पर,
लेट हंसी किलकारी हो।
भले दुखों की काली छाया ,
पर जीवन बने फुलवारी हो ।।
सहज सरल मार्ग पर तेरे ,
कांटे पैरों को जकड़ेगे ।
राह बनाई जो संघर्षों से तो ,
बाधक भी साथ तेरा देंगे ।।
सिर्फ ' विरोध ' के डर से तेरी ,
हिम्मत टूटने मत देना ।
घोर स्पृहा-शक्ति शामिल ,
लोहे से लोहा लेना ।।
मन कोमल हो अटल इरादे ,
मंजिल तेरी दूर नहीं ।
पत्थर-पत्थर ठोकर खाए ,
इतना भी तू कमजोर नहीं ।।
रसना वाणी तो शहद से मीठी ,
मन में नहीं जब मेल कोई ।
क्या खाकर कोई तुझसे हो विजित,
खेले भले तू खेल कोई ।।
पुष्प-पत्र मर्मरण होगी ,
मुरझे फूल खड़खड़ाहट भी ।
जीवन जन्म पर ढोल नगाड़े,
मरण-मौत सूनी आहट भी ।।
फूलों का खिलना सूरत पर,
कंटक-कसर बिसार दे ।
जीवन 'अजस्र' तेरा स्वर्ग से सुंदर,
मन को ऐसा विस्तार दे ।।
✍️✍️ *डी कुमार--अजस्र(दुर्गेश मेघवाल ,बून्दी/राज.)*
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