राम राज फिर आएगा...।
दशरथ कोई जब आप बने तो,
राम जनम ले पाएगा ।
रावण होगा जिस भी घर में ,
विभीषण पनप ही जाएगा ।
बंजर भूमि में कितने ही,
उच्च कोटि के बीज डलें ।
खाद , घड़ों पानी भी दे दो,
बीज पनप ना पायेगा ।
बाट जोहते भारतवासी ,
जन्म राम का ,अब तो हो ले ।
कलियुग गहन अंधकार है घिरता,
राम ही इसको मिटाएगा ।
आज के अंधियारे इस युग में,
सूरज कैसे उजलेगा ..?
तेल बाती दीपक जब होगा,
प्रकाश वोही फैलाएगा ।
सभ्यता के इस उत्कर्ष में हम,
वानर-भालू से बन गए हैं ।
आएगा कोई राम कभी तो ,
सुग्रीव ,हनुमान बनाएगा ।
ऋषिमुनि ,गुरुज्ञान , ' अजस्र '
राक्षस यज्ञों को कर रहे ध्वस्त ।
बाल्मिकी, तुलसी मिलकर ही ,
समाज एकता कराएगा ।
सीता रूपी संस्कृति को ,
कोई रावण भी मिटा न सका ।
घर-घर हो जब राम का दीपक,
संस्कार वोही तो खिलाएगा ।
मां क्योंकर कैकई बन जाए ,
सहस्त्र मंथरा कान भरे ।
भरत-राम के बीच भेद ही ,
दशरथ कभी मरवाएगा ।
स्वर्णमृग की मोहमाया में ,
कोई क्यों भव में डूबे।
माया बंधनो काटकर वो ही
' अजस्र ' को पार लगाएगा ।
लक्ष्मण बनकर भेद करोगे,
शबरी के बेरों से तुम ।
समय शक्ति की मार से तुमको,
कैसे कौन बचाएगा ?
अहिल्या जब पत्थर बन जाए,
ममता मर्यादा गहरा ह्रास ।
वोही राम फिर स्पर्श मात्र से,
नारी रूप पूजवाएगा ।
हक भाई का छीना जाकर,
बाली सम जब कोई बने ।
न्याय तराजू थाम, राम ही,
फिर मित्रता धर्म निभाएगा ।
धरती देश की सोना उगले ,
स्वर्ण चिड़िया का स्वरूप वो ही ।
बल बुद्धि विवेक हर आंगन ,
दीपों की माला सजाएगा ।
अयोध्या आज,भारत विस्तारित,
घर घर राम के दीप जले ।
मन से बुझती संस्कृति,उस लौ को,
वो भारत विश्व चमकाएगा।
चिर प्रकृति परिवेश संजोकर ,
उन्मुक्त गगन में सांसे ले ।
सभ्य विज्ञ संस्कृति भारत फिर,
विश्व गुरु बन पाएगा ।
गहरी काली रातों की भी,
सहर-सुबह तो निश्चित है ।
' अजस्र ' सूराम फिर चमकेगा ,
अंधियारे को वो ही भगाएगा ।
✍️ *डी कुमार–अजस्र(दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)*
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