*//::आया बसंत://*
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लो ! अब हुआ, जेडे का अंत।
मस्त मदमाता, फिर आया बसंत।
मौसम सुहावना, न ठंड, न गर्मी।
पवन की गति में, अब बनी है नारी।
बबूल-पीली, धानी ओढ़ चुनरिया।
बनी प्रकृति आज, मनों दुल्हनियाँ।
रिक-कपासी, बादल है चिन चिन।
*अजसर* सीजनराज के रंग हैं, अलग-अलग।
प्रातः-शाम अब, शरद गुलाबी।
दोदी धूप का, बस तापा शबाबी।
पुराने जमाने का, ये झर-झर के गिरना।
लाल-दुबला, नव कोपल का खिलना।
आदर्श , भोरों का , फूल पर फूलना ।
नायक-नायिका के मन, प्रेम फिर से धनुर्धारी।
खिलते प्रमाण सा, ये खनकता यौवन।
मन को मोहते, सब दृश्य मनोरम।
करवट प्रकृति की,अजसर बदलाव।
देखते हैं यूं ही, ये जीवन-भाव।
(02)
*मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी.......*///
जब भी आवाज दूं
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जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-जीभगवान् ने बनाया।
तन-प्यासा जन्म-जन्म से,
दरस को तरसे ये अखियाँ।
बोल-बोल-के जैसे हैं जग,
ताने स्रोत हैं साखियाँ।
लाज मेरी भी अब तेरा हाथ,
ज्ञान लाज बचाओ जी।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-जीभगवान् ने बनाया।
भक्त प्रहलाद,राधा और मीरा,
कॉल न खाली गया कभी।
एक आवाज पर दौड़ पड़े तुम,
भक्त बुलाये तुमको जब भी।
भरी जब सभा ड्रॉप कॉली,
लाज बचाई ज्ञान जी।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-जीभगवान् ने बनाया।
तीन लोक मित्र पर वारे,
गूढ़ मित्रता सिखलाई जी।
मित्र सुदामा गरीब जन्म का,
पर मित्रता अभिनीत जी.
मित्र न कोई छोटा-बड़ा हो,
मित्र 'अजस्र' ने जी को बनाया।
जब भी आवाज दूं चले आना,
मेरे गिरधर, मेरे कन्हाई जी।
रीत प्रीत की भूल न जाना,
जो भक्त-जीभगवान् ने बनाया।
✍️✍️ *डी कुमार--अजसर(दुर्गेश मेघवाल,बूंदी/राज.)*
✍✍ *डी कुमार--अजसर(दुर्गेश मेघवाल, बूंदी/राज.)*
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