(1) नाम -- कैलाश मंडलोंई ‘कदंब’
(2) पिता का नाम –स्व0श्री नानूराम मंडलोंई
(3) माता का नाम—श्रीमति नीलाबाई
(4) पत्नी का नाम—श्रीमति ललीता मंडलोई
(5) स्थाई पता : मु. पो.-रायबिड़पुरा तहसील व जिला- खरगोन (म.प्र.)
पिनकोड न.451440
मोबाईल नम्बर-9575419049
वाट्स एप न.-9575419049
ईमेल ID-kelashmandloi@gmail.com
(6)-शिक्षा :- एम. ए. हिन्दी,डी.एड.
(7)-जन्म दिनांक :- 15-06-1967
(8)-व्यवसाय- शिक्षक
(9) लेखन एवं साहित्यिक क्षेत्र में कार्य एवं उपलब्धियाँ
(1) लेखन विधा—नई कविता, छंद, छंदमुक्त रचनाएं एवं आलेख लेखन आदि।
(2) अनेक कवि सम्मेलनों में कविता पाठ
(3) प्रकाशन विवरण-
(1)- सम्पदन
अभ्युदय काव्यमला में सम्पादक
(2) सामूहिक काव्य संग्रह
(1) वर्तमान सृजन, (2) नव काव्यांजलि, (3) एक पृष्ठ मेरा भी, (4) छंद कलश, (5) संगम समीक्षा सुधा (6) मन की बात, (7) समकालीन हिंदी कविता खंड-1 (8) अम्मा कहती थी, (9) संगम संकल्पना, (9) नये पल्लव-2 (10)काव्यांकुर-5 (11) स्पंदन (12) कथा सेतु (13) विचार मंथन (14) सृजन गुच्छ-1 (15) अभ्युदय काव्यमला
(3) व्यक्तिगत प्रकाशित पुस्तक
(1) साहित्यमेध
(2) सृजन-सृजक-समीक्षा
(4) अनेक पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पोर्टलों पर कविताएँ, कहानी, आलेख, समीक्षा प्रकाशित
(1) शैक्षिक दखल पत्रिका (2) हस्ताक्षर वेब पत्रिका (3) देश बंधु (4) रचनाकार (5) literature point (6) सेतु
(7) लोक जंग (8) सवेरा (9) न्युज दरबार (10) अंतरा शब्द शक्ति (11) वर्तमान अंकुर आदि।
(5) सम्मान- साहित्यिक क्षेत्र में पुरस्कार
1-साहित्य संगम संस्थान द्वारा प्रदान श्रेष्ठ रचनाकार एवं श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मान।
2-काव्य मार्तण्ड सम्मान 3- साहित्य संगम समीक्षाधीश 4-साहित्य अभ्युदय सम्मान
5-साहित्य मार्तण्ड सम्मान वर्ष 2018
साहित्य संगम संस्थान दिल्ली द्वारा प्रदाय
6- अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 2018
अंतरा शब्दशक्ति समूह द्वारा प्रदाय
तथा साहित्य संगम संस्थान की व्याकरणशाला एवं छंदशाला में श्रेष्ठ प्रदर्शन के प्रमाण पत्र।
(6) विशेष पुरस्कार
1- जिला स्तर पर कलेक्टर द्वारा सम्मानित
2-जिला स्तर पर पर्यावरण पर सम्मानित
3- जिला स्तर पर शिक्षक सम्मान से सम्मानित।
4- वर्ष 2016 से 2020 तक*साहित्य संगम संस्थान* में पंच परमेश्वर अधीक्षक के पद पर भी कार्य किया जो ऑनलाइन व्हाट्सएप फेसबुक ट्यूटर यूट्यूब पर साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन करती है। जैसे दैनिक विषय पर सृजन
गजल शाला, व्याकरण शाला, गीत संगीत, छंदशाला के साथ ही साथ ऑनलाइन मंचीय कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता हैं। साथ ही साथ साझा पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है एवं 5 ई पत्रिकाएं भी निकाली जाती है।
5- अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालव प्रांत खरगोन जिला इकाई में सदस्य।
अन्य शैक्षिक गतिविधियाँ
चाहे तो
सब कुछ मुमकिन है (आत्मकथ्य)
जब मैं
कन्या मा0 वि0 रायबिड़पुरा में दिनांक 15/12/2005 को अन्य संस्था से स्थानांतरित हो
कर आया तो यहाँ के शाला परिसर की हालत बहुत ही खराब थी। खेल के मैदान एवं अन्य
व्यवस्थाओं से सम्बन्धित कुछ असामाजिक व्यवस्थाएँ निर्मित थी। यहाँ गंदगी एवं
अव्यवस्थाओं का साम्राज्य था जिससे न तो शाला के अन्य कर्मचारियों को कोई आपत्ति
थी और न ही गाँव के लोग और न सरपंच महोदय को। वालबाउंड्री न होने से शाला परिसर
चारों ओर से खुला था। आवारा बच्चे यहाँ दिन भर खेला करते थे। शाला की खिड़कियाँ व
दरवाजे तोड़ना, भवनों
की छत पर चढ़ कर दौड़ना आम बात थी। आए दिन गाँव के अराजक लोगों का जमघट लगा रहता था।
दशहरे पर रावण के पुतले को यही जलते थे। लोग कूड़ा करकट यहीं फेंकते थे, कुछ लोग अपने जानवरों को भी यहाँ बाँधते थे। स्कूल मैदान नदी से लगा था। नदी
किनारे लगभग 500 मीटर क्षेत्र में कटीली झाड़ियाँ, बबूल के
पेड़ एवं बड़े-बड़े गड्ढे थे। गाँव के लोग इसी मैदान में देर सबेरे शौच भी करते थे और
मैदान शौच एवं गंदगी से पटा रहता था। गाँव के पूर्व सरपंच ने 50 से 55 ट्राली
पत्थर एवं मलबे का ढेर इसी मैदान में लगा दिया था जिनमें कांटे व झड़ियाँ उग आई थी
तथा इनमें आए दिन सांप बिच्छु निकलते थे। जब मैंने सरपंच को मैदान में डाले गए
पत्थर एवं मलबे के ढेर को हटाने का आवेदन दिया तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया की
यह तो पूर्व सरपंच का काम है मेरा नहीं। तब मैंने ही पत्थरों को हटाने का काम
स्कूल समय के अतिरिक्त समय में सुबह शाम दो घंटे दे कर शुरू कर दिया। इस कार्य में
मैंने बच्चों का भी सहयोग लिया। मैं पत्थरों को उठाकर नदी किनारे जमाने लगे। और
मैंने बच्चों के साथ मिलकर लग-भग एक वर्ष के सेवा कार्य में इन पत्थरों को उठाकर
नदी किनारे बहुत बड़ा पाला जमा दिया।
उन्हीं दिनों एक और समस्या थी की गाँव के
लोग इसी मैदान में देर सबेरे शौच करते थे। मैदान शौच एवं गंदगी से पटा रहता था। मैंने शाला
परिसर में शौच करने वाले लोगों को रोकने की योजना बनाई। फिर क्या था मैं सुबह 4
बजे हाथ में टार्च लेकर शाला मैदान में छिपकर बैठने लगा और जो भी व्यक्ति मैदान
में शौच करने बैठता मैं उसके मुंह पर टार्च का लाइट मरता और वह व्यक्ति वहाँ से
भागता। इस प्रकार शौच करने वाले लोगों को भगाने का काम लगभग 4 वर्षों तक चलता रहा।
मैंने हार नहीं मानी और लोगों ने यहाँ शौच करना बंद कर दिया। इसी बीच अनेक लोगों
से मेरी कहासुनी भी हुई। उसकी एक अलग कहानी है। वह एक त्रासदी पूर्ण संघर्ष था।
तभी पौधे लगाने का शासकीय आदेश आया और मैंने 10-12 पौधे लगा कर वृक्षारोपण का
कार्य शुरू किया। जो जुनून बनकर सवार हो
गया और पूरे शाला परिसर में 1000 पौधों का रोपण किया जो आज 15 वर्षों की अथक मेहनत
से बड़े वृक्ष बन गए हैं। वर्ष 2005 में 20 पौधे
लगाए और 4-5 माह की देखभाल में पौधे बड़े होने लगे और फिर शुरू हुआ वृक्षारोपण का
दोर। वर्ष 2006-07 में 100 पौधे, वर्ष 2007-08 में 200 पौधे और वर्ष 2008-09 में
200 पौधे लगाए तथा 40
इस कार्य को करने में मुझे अपने दोस्तों, रिश्तेदारों एवं
सामाजिक कार्यों से भी दूर रहना पड़ा। मैंने अपने इन 15 वर्षों की सभी छुट्टियाँ चाहे रविवार
हो, कोई भी त्योहार हो या गर्मि की छुट्टियाँ हो का सभी समय अपनी सुख सुविधाओं को
त्याग कर को
इन पेड़-पौधों की देखरेख में लगा दिया। इन सभी दिनों में मै
शाला मे सुबह 5 बजे से लेकर संध्या 8 बजे तक उपस्थित रहकर पेड़ पौधो की कटाई
छटाई,पानी,रखवाली,बागड़ लगाना,विज्ञान माँडल बनाना एवं प्रदर्शन करना इसी में लगा रहता
हूँ। अभी तक मैं अपने पास से एक लाख रुपए से अधिक खर्च कर चूका हूँ।
शुरुआत के दो-तीन वर्षों में जब मैं
सुबह-सुबह स्कूल में काम करने लग जाता जैसे पत्थर फेंकना, गड्ढे खोदना, झाड़ियाँ काटना देर सबेरे व देर रात तक स्कूल में रहना तो लोग मुझे पागल
कहने लगे और मुझे इस तरह जुनून में यह
कार्य करते हुए देख लोगों ने कई उपाधियाँ व उपमाएँ दी जैसे पागल मास्टर, झाड़ लगाने वाला मास्टर, गंदगी उठाने वाला मास्टर
आदि।
संसार में कुछ लोगों में एक गुण विशेष पाया जाता है, दूसरों की हँसी उड़ने का गुण। आपका उपहास कोई करता है करता रहे यह सोचकर मैं अपना काम करता रहा कर रहा हूँ। इसके साथ अन्य दुसरी गतिविधियाँ भी चलती रही जैसे अतिरिक्त समय में कक्षा 6,7.व 8 के छात्र/छात्राओ को पढ़ाना तथा सुबह 6 बजे से 7.30 बजे तक योग की कक्षाऐ लगाना। योग की कक्षा में हाइस्कुल के बच्चे भी आते है ये कक्षाऐ मैं अक्टूम्बर, नवम्बर एवं दिसम्बर माह में लगता हूँ।
शैक्षिक
सामग्री का निर्माण व प्रदर्शन
600 से अधिक विज्ञान एवं गणित के माडलों का निर्माण वह भी अनुपयोगी वस्तुओं से,1000 से अधिक कटाउट्स,1000 से अधिक चार्ट,अख़बार की कटिग जिसमे खाली माचिस डिबिया,खाली खोखे,रिफिल,पेन के ढक्कन,खाली टुथपेस्ट,प्लास्टिक पन्नियाँ,सइकिल रबरट्यूब, टेपरीकार्डर की मोटरे, लकड़ी के गत्ते से बने माडल आदि। अन्य शालाओं के छात्र/छात्राओ को अपनी शाला में बुलाकर विज्ञान/गणित माडलों का प्रदर्शन करना। वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करना व विभिन्न राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक दिवसों तथा महापुरुषों के जन्म दिनों पर ग्राम के लोगों एवं अन्य संस्था के कर्मचारियों को एकत्रित कर गोष्ठियों का आयोजन करना।
विगत तीन वर्षों से लेखन एवं साहित्यिक क्षेत्र में भी कार्यरत हूँ। अनेक पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पोर्टलों पर कविताएँ, कहानी, आलेख, समीक्षा प्रकाशित एवं उनेक सामूहिक काव्य संग्रह व व्यक्तिगत पुस्तकें प्रकाशित।
क्या है मेरी स्कूल में-
वैसे भारत जैसे देश में खासकर स्कूली
शिक्षा को लेकर ज्यादातर खबरें निराशाजनक होती है। आए दिनों समाचार पत्रों में जो
खबरें छपती रहती है वह शिक्षकों और शिक्षा तंत्र पर टीका-टिप्पणी लिए होती है।
अकसर कहीं शिक्षा पर चर्चा होती है तो उसमें भी नकारात्मक भाव अधिक
होता है। शिक्षा के इस पूरे दृश्य में ऐसा तो नहीं कि हर कहीं अंधेरा ही अंधेरा है।
कहीं न कहीं कुछ ऐसी मिसालें देखने को मिल ही जाती है जहाँ कुछ बेहतर
करने की कोशिशें जारी है। कुछ स्कूल ऐसे मिल जाएंगे जहाँ शिक्षक बड़ी ही दिलचस्पी से पढ़ाते हैं। जहाँ शिक्षकों ने अपने
बलबूते पर स्कूल की दशा को संवार दिया है। जहाँ शिक्षकों और बच्चों के बीच
के रिश्ते प्रगाढ़ दिखाई देते हैं। जहाँ बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती है। खरगोन जिले में ऐसी ही एक
स्कूल है रायबिड़पुरा गाँव का कन्या माध्यमिक विद्यालय है। इस स्कूल में
खास क्या है? अगर आप ऊन से रायबिड़पुरा गाँव में घुसते हैं तो यहाँ सड़क के दाएँ ओर गाँव से
सटे हुए एक स्कूल के दर्शन हो जाएँगे। स्कूल के सामने ही डाकघर है। साथ ही सड़क
के दूसरी ओर गाँव वासियों के घर बने हुए हैं। अगर बाहर से ही स्कूल में झाँके तो सलीके से लगे हुए
खूब सारे हरे-भरे पेड़ और लॉन दिखेंगे। बेशक, इन पेड़-पौधों और लॉन की देखभाल होती होगी
वरना ये कब के सूख चुके होते। इनकी देखभाल भी नियमित होती है। कोई तीस-बत्तीस
प्रजातियों के पेड़ और लताएँ से लहलहाता स्कूल परिसर है। स्कूल और बगीचे की चारों तरफ से सुरक्षा के लिए दीवार। बगीचे में ही झण्डावंदन का चबूतरा बना है जो दिल्ली के लाल
किले की याद दिला देता है। स्लोगन लिखा स्कूल भवन। शौचालय का उचित प्रबंध। ये
शौचालय एकदम साफ मिलेंगे। शौचालयों में पानी की माकूल व्यवस्था है। पानी के लिए स्कूल भवन में ही एक
बड़ी टंकी बनाई गई।
जब आप भीतर जाओगे तो साफ स्वच्छ एवं शैक्षिक चार्ट माडलों से सजे कमरे
दिखाई देंगे। जब इस कमरे में घुसेंगे तो आपकी आँखें फटी की फटी रह जाएगी। आप देखेंगे कि एक हॉल में प्रयोशाला बनाई
हुई है। ऐसी प्रयोगशाला जहाँ विज्ञान के सैकड़ों
प्रयोग किए जा सकते हैं। विविध प्रकार की सामग्री का प्रदर्शन किया हुआ।
आखिर क्या नहीं है इस प्रयोगशाला में। मापन-दूरी, आयतन, वजन के लिए स्केल, बाट, लीटर आदि आदि। चुम्बक तरह-तरह के- चकती चुम्बक, छड़ चुम्बक, रिंग चुम्बक। इनकी संख्या भी इफरात में।
हर कुछ मिलेगा। दो दर्जन स्पेसिमेन तरह-तरह के जो अमूमन उच्चतर
माध्यमिक विद्यालयों की जीव विज्ञान की लेब में भी अब देखने को नहीं मिलते जो
यहाँ पर हैं। प्रकाश, चुम्बक, विद्युत चुम्बक, बल, गति ध्वनि, मापन और तमाम अवधारणाओं पर प्रयोग करने की
सामग्री। रसायन शास्त्र की बात करें तो कई तरह के रसायन, भौतिक तुला, लिटमस और बहुत कुछ। सूक्ष्मदर्शी, हेण्डलेंस और बहुत कुछ। यहाँ कबाड़ से जुगाड़ (लिटील
साइंस) भी है। फालतू बोतल से बनाई हुई फिरकनी भी है। आप इसे चलाकर
देखेंगे तो अचरज में पड़ जाओगे। बोतल को दबाने से अन्दर की हवा बोतल के
मुंह पर लगी फिरकनी पर फिंकती है और फिरकनी घूमने लगती है। जिज्ञासु मन बार-बार चलाने
को कहता है। इसलिए जिसके भी हाथ में यह मॉडल आता है उसका दिल उसे छोड़ने का नहीं करता। आखिर खिलौने
में भी विज्ञान के तत्व निहित हैं।
प्रयोगशाला में आपको वाल्व के सि़द्धान्त को समझाने के लिए
हेंडपम्प मिल जाएँगे जो देशज सामग्री से बनाए गए हैं। कैमरे की डिब्बी, सायकिल के ट्यूब और रिफील से तैयार हेंडपम्प कोलगेट
टूथपेस्ट की बेकार ट्यूब से हेंडपम्प एक दिलचस्प प्रयोग जो कि अमूमन मैंने कुछ
खास उस्तादों को ही करते देखा। यह मैंने पुणे में सीखा। वहाँ मैं अरविन्द गुप्ता
से मिला था। उनसे कई सारे
प्रयोग सीखे। मेरे पास अरविन्द गुप्ता की कई सारी किताबें भी हैं। आपने स्कूली शिक्षा में विद्युत ऊर्जा को यांत्रिकी ऊर्जा में
बदलने का प्रयोग तो आसानी से (इतना आसान भी नहीं) करते देखा है। जैसे कि मोटर
बना लेना। मगर यांत्रिकी ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाला सबसे आसान से प्रयोग
यहाँ देखने को मिलेंगे। इतना आसान कि हर कोई कहीं भी कर सकता है। टेप रेकार्डर में लगने वाली छोटी
सी मोटर और एक एल.ई.डी. और तार बस। सर्किट बनाओ और मोटर को घुमाओ। बल्ब
जलने लगेगा। बहुत ही आसान सा प्रयोग। संक्षिप्त में कबाड़ से जुगाड़ के सही अर्थों में यहाँ दर्शन किए
जा सकते हैं।
स्कूल में काफी सारी किताबें भी हैं। दो-तीन लोहे की
अलमारियों में किताबें रखी हुई हैं। कहानियों, कविताओं, विज्ञान के प्रयोग की किताबें, प्रशिक्षण के मॉडयूल और भी बहुत कुछ। कई तरह की पत्रिकाएँ जैसे कि समझ झरोखा, चकमक, गुल्लक, बाल भारती...। कई अखबारों में शिक्षा, समाज और विज्ञान आदि पर छपे लेखों की
कतरनें। गुरुजी चिंचालकर के लेख वगैरह। स्कूल में एक कोना सूचना का भी है जहाँ अखबारों की कतरनें
वगैरा चस्पा की जाती हैं।
मैं विज्ञान का विद्यार्थी तो नहीं हूँ, केवल आठवीं तक ही विज्ञान पढ़ा। मगर
विज्ञान में दिलचस्पी खूब रखता हूँ। मैं अपने स्कूल में विज्ञान
और गणित विषय का शिक्षण करता हूँ। मैं समस्याओं का जिक्र करने में समय
नष्ट नहीं करता मैं समस्याओं से जूझने की कहानियों में विश्वास करता हूँ। मेरा
चुनौती पूर्ण कार्यों से एक रिश्ता सा बन चुका है। इसे करने में मुझे मजा आता है। और इसलिए करता हूँ। तथा मैं और क्या बेहतर कर सकता हूँ इस पर सोचता रहता हूँ।
सभी ने सराहा
मेरे स्कूल का अवलोकन जिले स्तर एवं राज्य स्तर
के अधिकारियों, कर्मचारियों के अलावा कई स्कूलों के बच्चे व शिक्षक साथी कर चुके
है। जिसने भी मेरे स्कूल को देखा अनुकरणीय कार्यों को सिर-आँखों पर लिया। प्रशंसा
के बेशुमार प्रमाण पत्र जारी किए। मुझे जिला स्तर पर भी उत्कृष्ट कार्य के लिए
सम्मानित किया गया।